Loading...

लाइब्रेरी एड्युकेटर्स कोर्स करने के बारे में आज से चार साल पहले यानी 2016 में सोचा था। मन में हिचकिचाहट थी कि किताबों के सम्‍पादन का लम्‍बा अनुभव है तो फिर क्‍या यह कोर्स करना चाहिए। इस हिचकिचाहट को दूर होने में तीन साल का समय लगा और 2019 में इस कोर्स में प्रतिभागी के तौर पर मैं शामिल हुई। सात महीने की कोर्स अवधि के दौरान काफी सारे अपरिचित चेहरे दोस्‍तों में बदल गए, फैकल्‍टी और मेंटर के साथ संवाद केवल कोर्स तक न रहा वो कई विमर्श की ओर बढ़ा। तब मैं यह नहीं जानती थी कि इस कोर्स के साथ आगे भी रहूंगी एक अलग भूमिका में। यह भूमिका है मेंटर की।

एक प्रतिभागी से एक मेंटर तक का यह सफर और इसके कई पड़ावों को यहां दर्ज कर रही हूं। मुझे यह महत्‍वपूर्ण लगता है क्‍योंकि हम जब भी कुछ सीखते हैं तो उससे न केवल काम बेहतर होता है बल्कि वह आपकी सोच का दायरा बढ़ाता है। आपको ठकठकाता है और कहता है कि अपने कामों का विश्‍लेषण करो। देखो इसमें क्‍या कुछ ऐसा है जिसे बदलने से न केवल काम बल्कि आपकी पर्सनालिटी भी बदलेगी। 2018 में एकलव्‍य संस्‍था ने भोपाल और इसके इर्द–गिर्द समुदाय में रीडिंग कार्यक्रम शुरू किया। इस कार्यक्रम की संकल्‍पना के समय से ही मेरा इसमें जुड़ाव रहा और फिर इस काम में जुड़ गई। समुदाय में पढ़ने की स्थिति कमज़ोर होना, परिवारों में पढ़ने के माहौल का न होना, साहित्‍य तक पहुंच न होना, स्‍कूलों में लाइब्रेरी की निष्क्रियता एक ज़मीनी हकीकत थी जिसने इस कार्यक्रम के आयामों के साथ ही अपने अनुभवों को और विस्‍तार देने की ओर मुझे ला दिया।

इस कोर्स की बुनियाद में लाइब्रेरी को लोकतांत्रिक जगह बनाने का विचार है। ऐसी जगह जहां संवाद हो और ज्ञान का आदान–प्रदान हो। यह विचार शिक्षा और बच्‍चों के साथ काम करने वाले लोगों के बीच फैलाता है लाइब्रेरी एड्युकेटर्स कोर्स। मुझे याद है कि कॉन्‍टेक्‍ट क्‍लास के दौरान कृष्‍ण कुमार के व्‍याख्‍यान को सुनने के बाद होने वाली चर्चा में शिक्षा के उद्देश्‍य पर बात हो रही थी। पारंपरिक शिक्षा में नौकरी पाना ही एकमात्र उद्देश्‍य है और यह केवल परीक्षा पास होने के लिए हासिल की जाती है। उस समय काफी सारे लोग यह सोचने को विवश थे कि क्‍या वाकई पढ़कर पास होना ही शिक्षा है?

पढ़ने का घंटा, कोर्स के दौरान एक ऐसा समय जब सब किताबें पढ़ते थे चाहें वो फैकल्‍टी हों या फिर प्रतिभागी। इस पढ़ने में किताबों को लेकर की गई आपसी चर्चा अनकहे ही एक माहौल बना देती थी कि किताबें कौन–सी चुनी जाएं, उनमें क्‍या अच्‍छा है, किस तरह से दूसरी किताब से अलग हैं। इस गतिविधि ने मुझे अपनी व्‍यस्‍तताओं के बीच चंद पल चुराकर अपने लिए पढ़ने के मज़े की ओर नियमित कर दिया जो बीच में कुछ छूट–सा गया था।

इस कोर्स के दौरान डायरी लेखन से जो दोस्‍ती हुई वह आज भी जारी है। डायरी में दर्ज विचारों से आगे की काम की दिशा भी मिलती है और बीच–बीच में पुराने पन्‍नों को पलटने से पता चलता है कि क्‍या छूटा है जिस पर काम करना है।
लाइब्रेरी एड्युकेटर्स कोर्स का एक प्रभाव जो मैंने अपने कामों में महसूस किया है वह यह है कि जब आप समुदाय में पढ़ने को लेकर काम कर रहे हैं तो सबसे पहले ज़मीनी कार्यकर्ताओं को पढ़ने का माहौल देना बेहद ज़रूरी है ताकि वो निजी जीवन में भी पढ़ें, उनकी समझ बढ़े। इसके साथ ही ज़मीनी कार्यकर्ताओं के परिवेश और उनकी निजी दिक्‍कतों को समझने के मानवीय पहलू पर भी ध्‍यान होना चाहिए जिससे कार्यकर्ता को समझने में मदद मिले।

मेरी भूमिका आज मेंटर की है और इसमें भी यह मानवीय पहलू काम करता है। पर इस भूमिका में एक फेसिलिटेटर के रूप में खुद बने रहने के लिए काफी कोशिश करनी पड़ती है। जिससे मेंटीज पर दबाव न बने और उनके खुद के विचार सामने आएं।

Of Boxes and Labels

Of Boxes and Labels

Flyaway Boy is a story about a boy who doesn’t fit in – not in his school, among friends and sometimes even struggles to feel part of his family…

Swaha Sahoo Parag Reads 27 November 2020

Pyari Madam

Pyari Madam

Pyari Madam is the story of a young school girl who interacts with her teacher through her diary, where she opens her heart out…

Swaha Sahoo Parag Reads 31 July 2020